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रोली सजल




रोली सजल

        (अभिनव छंद)


अभिनव का सत्कार, धर्म प्रायोगिक है।

होता रहे प्रयोग, कर्म यह भौतिक है।।


नूतन चिंतन होय, नयापन आयेगा।

उत्तर होय विकास, मर्म प्रिय लौकिक है।।


रहे प्रयोगी भाव, नये-नये को खोज।

हो अभिनव विस्तार, आज मन ऐकिक है।।


रुकना लगता व्यर्थ, बढ़ो निरन्तर रोज।

क्रमशः करो प्रयास,सुखद यह नैतिक है।।


गुण का नवल प्रयोग,नित नयापन लाता।

लगातार नव योग, सुखद नव स्वैच्छिक है।।


रख वैज्ञानिक वृत्ति, चिंतन चले अनंत।

चलो गगन-पाताल, भाव नैसर्गिक है।।





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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 05:02 PM

👍👍🌺

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